भारत ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया कि रूस से उसकी दोस्ती बाकी देशों के मुकाबले कितनी खास और गहरी है. भारत ने साफ कर दिया है कि भले ही ग्लोबल मार्केट रूसी तेल से डिस्काउंट कम हो गया हो, लेकिन वह वहां से कच्चा तेल लेना बंद नहीं करेगा.
भारत के रूसी तेल खरीदारों ने साफ कर दिया है कि आज भी रशियन ऑयल भारत के लिए सबसे सस्ते ऑप्शंस में से एक है. इस खबर के बाद खाड़ी देशों के लिए बड़ा झटका है, जो इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि भारत के खरीदार अब उनसे तेल खरीदेंगे. खाड़ी देशों ने इंडियन ऑयल इंपोर्टर्स को कई तरह के ऑफर्स भी दिए थे.
भारत में रूसी कच्चे तेल का कंजंप्शन पिछले साल से बढ़ा और सऊदी अरब, इराक को पीछे छोड़ते हुए टॉप स्पलायर बन गया. यह फैसला इसलिए लिया गया था ताकि देश में बढ़ती महंगाई को कंट्रोल किया जता सके. इस साल की शुरुआत में, डिलीवरी के आधार पर रूसी क्रूड और खाड़ी क्रूड के बीच का अंतर लगभग 20 डॉलर था. आज, यूराल कार्गो के लिए दी जाने वाली छूट 8 डॉलर के करीब है.
खाड़ी से सस्ता रूसी कच्चा तेल
आर्गस मीडिया लिमिटेड के आंकड़ों के अनुसार 4 अगस्त को भारत के पश्चिमी तट पर रूसी क्रूड की कीमत 81 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर थी, जबकि एक महीने पहले यह लगभग 68 डॉलर थी. फिर भी, भारत में चार प्रमुख रिफाइनर के अधिकारियों ने कहा कि वे रूस के तेल खरीदना जारी रखेंगे. उनका तर्क है कि रूसी तेल और खाड़ी के तेल की क्वालिटी करीब-करीब एक जैसी है. उसके बाद भी रूसी तेल मिडिल ईस्ट के ऑयल के मुकाबले अब भी काफी सस्ता है. ऐसे में रूसी तेल ही क्यों ना खरीदा जाए. इसका मतलब है कि भारत अभी भी अनुमान से ज्यादा रूसी तेल खरीद रहा है.
रिफाइनिंग में भी कोई समस्या नहीं
सिटीग्रुप इंक में भारत के चीफ इकोनॉमिस्ट समीरन चक्रवर्ती ने कहा कि बीते कुछ समय से ऐसी धारणा देखने को मिल रही थी कि भारत के पास रूसी कच्चे तेल को रिफाइन की क्षमता काफी कम है, जो रूसी इंपोर्ट पर नेचुरल लिमिट लगा सकती है, लेकिन यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि ऐसी कोई समस्या नहीं है. इसका मतलब यह होगा कि भारतीय रिफाइनर अपने रूसी तेल इंपोर्ट को तब तक जारी रख सकते हैं, जब तक छूट इंपोर्ट कॉस्ट से ज्यादा रहेगा.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जून में, माल ढुलाई सहित भारतीय तटों पर रूसी कच्चे तेल की लैंडिंग की औसत लागत 68.17 डॉलर प्रति बैरल थी, जो यूक्रेन पर मास्को के आक्रमण के बाद से सबसे कम है. इसकी तुलना सऊदी अरब करें तो भारतीयों को यही कॉस्ट 81.78 डॉलर थी.
9 महीन के हाई पर कच्चा तेल
सऊदी अरब और रूस द्वारा कच्चे तेल के प्रोडक्शन में प्रतिबंध लगाया हुआ है. जिसकी वजह से ग्लोबली क्रूड ऑयल के दाम 9 महीने के हाई पर 86 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा हो गए हैं. अधिकारियों ने कहा कि कच्चे तेल से फ्यूल बनाने से ठोस रिटर्न भी कच्चे तेल की लागत में वृद्धि की भरपाई कर रहा है. ब्लूमबर्ग फेयर वैल्यू के अनुसार, कुल मिलाकर एशियाई रिफाइनिंग मार्जिन जुलाई की शुरुआत से तीन गुना से अधिक हो गया है.
माना कि पिछले कुछ महीनों में रूसी कच्चे तेल के इंपोर्ट की मात्रा अपने रिकॉर्ड हाई से कम हो गई है और केप्लर के अनुसार इसमें और गिरावट आने का अनुमान है. कटोना ने कहा ने कहा कि अक्टूबर के महीने से रूसी क्रूड आॅयल की सप्लाई में इजाफा होने का अनुमान है.